पत्रकार द्वारा जमीन कब्जाजिले में दाखिल-खारिज की लापरवाही ने भू-माफिया और कुछ पत्रकारों को जमीन कब्जाने का हथियार दे दिया है। श्रीनगर कॉलोनी में एक पुराना मामला सुर्खियों में है, जहां पत्रकारिता की आड़ में यादव समाज को मोहरा बनाकर जमीन पर कब्जा करने की साजिश रची जा रही है। जानिए पूरी सच्चाई, किस तरह पुराने काश्तकारों, दबंगों और पत्रकारों की मिलीभगत से आम लोग हो रहे हैं परेशान। पढ़ें विस्तृत विश्लेषण इस विशेष रिपोर्ट में (एटा जमीन विवाद)।
📌 भूमिका
उत्तर प्रदेश के एटा जिले में एक गंभीर समस्या तेजी से उभर रही है — प्लॉट्स का दाखिल-खारिज न होना। यह प्रशासनिक कमजोरी अब भू-माफिया और कुछ स्वार्थी पत्रकारों के लिए जमीन कब्जाने का हथियार बन चुकी है। खासकर भाजपा शासन में यादव समाज को मोहरा बनाकर कुछ पत्रकार जमीन कब्जाने की साजिशें रच रहे हैं।
🏠 दाखिल-खारिज में लापरवाही बनी विवादों की जड़
हर दिन एटा में सैकड़ों प्लॉट्स की रजिस्ट्री होती है, लेकिन उनका दाखिल-खारिज नहीं हो पाता। इसका सीधा फायदा पुराने काश्तकारों को मिलता है, जिनके नाम अब भी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज होते हैं। ये काश्तकार पहले ही बिक चुकी जमीनों को दोबारा बेचकर आम नागरिकों और प्रशासन दोनों को धोखे में रख रहे हैं।
⚠️ श्रीनगर कॉलोनी का मामला: पत्रकार का विवादित खेल
आगरा रोड स्थित श्रीनगर कॉलोनी में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। वर्ष 1981 में लक्ष्मण सिंह नामक व्यक्ति ने सात बीघा जमीन श्रीनगर सहकारी समिति को बेच दी थी। उनके निधन के बाद जमीन का नाम उनके बेटों मेघ सिंह, फूल सिंह आदि के नाम चल रहा है, जबकि असल में वो जमीन पहले ही बिक चुकी है।
यही कमजोरी देखकर डाक बंगला निवासी पत्रकार सुनील मिश्रा और उसके साथियों ने चालाकी से मेघ सिंह और उनके भाइयों से एक इकरारनामा करवा लिया — शर्त ये थी कि अगर वो ज़मीन पर दबंगई से कब्ज़ा कर लें, तो भाइयों को भुगतान कर देंगे।
🧱 30 साल से बसे परिवारों की अनदेखी
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस जमीन पर पिछले 30-35 वर्षों से लगभग 50 मकान बने हैं, वहाँ काश्तकारों या उनके वारिसों ने इतने वर्षों तक कोई विरोध क्यों नहीं किया? जवाब साफ है — जमीन बिक चुकी थी, और उस पर नए लोग वैध तरीके से बसे हुए हैं।
📰 पत्रकारिता के नाम पर माफियाराज की कोशिश
इस विवाद की गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब पत्रकार सुनील मिश्रा अपने चैनल के माध्यम से “यादवों द्वारा दलितों की जमीन कब्जाने” का झूठा नैरेटिव गढ़ता है। असलियत यह है कि सुनील मिश्रा खुद एक पत्रकार के रूप में सत्ता, मीडिया और दबंगई का इस्तेमाल कर जमीन कब्जाने की साजिश में लगा है।
वह न सिर्फ प्रशासन को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि समाज में जातीय तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
🧑⚖️ प्रशासन को सतर्क रहने की ज़रूरत
यह मामला न सिर्फ पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की भी पोल खोलता है। ज़रूरत है कि:
- दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाए।
- पुराने काश्तकारों द्वारा बेची गई जमीन पर दोबारा रजिस्ट्री और कब्जे की जांच हो।
- ऐसे मामलों में संलिप्त पत्रकारों और भू-माफियाओं के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही हो।
✅ निष्कर्ष
एटा में पत्रकारिता के नाम पर हो रही भू-माफिया गतिविधियाँ न केवल सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने का प्रयास हैं, बल्कि कानून और नैतिकता दोनों का उल्लंघन हैं। यादव समाज को मोहरा बनाकर जमीन कब्जाने की यह नई तरकीब समाज में जातिगत दरार पैदा करने की खतरनाक साजिश है, जिसे समय रहते रोकना बेहद आवश्यक है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)- एटा जमीन विवाद
प्र.1: एटा में पत्रकारों से जुड़ा जमीन विवाद क्या है?
एटा में कुछ पत्रकारों पर आरोप है कि वे यादव समाज को आगे कर पहले ही बिक चुकी जमीनों पर अवैध कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।
प्र.2: सुनील मिश्रा कौन हैं और उनकी भूमिका क्या है?
सुनील मिश्रा एक पत्रकार हैं जिन पर आरोप है कि उन्होंने पुराने काश्तकारों को बहला-फुसलाकर जमीन का इकरारनामा करवाया और अब दबंगई के बल पर कब्जा करना चाह रहे हैं।
प्र.3: एटा में दाखिल-खारिज की समस्या क्यों गंभीर है?
यहां जमीनों का रजिस्ट्री होने के बाद भी सरकारी रिकॉर्ड में बदलाव नहीं होता, जिससे पुराने मालिक दोबारा जमीन बेचने या कब्जा करने की कोशिश करते हैं।
प्र.4: यादव समाज को इस विवाद में कैसे मोहरा बनाया गया?
कुछ पत्रकार यादवों के नाम का इस्तेमाल कर जमीन विवाद को जातीय रूप देने की कोशिश कर रहे हैं ताकि असली साजिश से ध्यान भटकाया जा सके।
प्र.5: श्रीनगर कॉलोनी की जमीन का इतिहास क्या है?
वर्ष 1981 में यह जमीन श्रीनगर सहकारी समिति को बेच दी गई थी, लेकिन बाद में मृतक के बेटों ने दोबारा कब्जे की साजिश की।
प्र.6: क्या जमीन पर पहले से लोग बसे हुए हैं?
हां, पिछले 30–35 वर्षों से लगभग 50 परिवार इस जमीन पर मकान बनाकर रह रहे हैं, फिर भी विवाद खड़ा किया गया है।
प्र.7: क्या पत्रकारिता का दुरुपयोग हो रहा है?
जी हां, कुछ पत्रकार अपने चैनल के माध्यम से झूठी खबरें फैलाकर प्रशासन और जनता को भ्रमित कर रहे हैं।
प्र.8: क्या ऐसा विवाद सिर्फ एटा में हो रहा है?
नहीं, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं, खासकर जहां दाखिल-खारिज की प्रक्रिया कमजोर है।
प्र.9: जमीन खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जमीन की वैधता, दाखिल-खारिज, कब्जा, और रिकॉर्ड की जांच ज़रूरी है ताकि भविष्य में कोई विवाद न हो।
प्र.10: क्या एक बार बेची गई जमीन दोबारा बेची जा सकती है?
नहीं, एक बार वैध रूप से बेची गई जमीन को पुराने मालिक या उनके वारिस दोबारा नहीं बेच सकते। यह गैरकानूनी है।